वैसे तो हिन्दू मान्यताओं में सिंह को देवी अंबा का वाहन माना गया है। यह वाहन युद्ध स्थिति विशेष के लिए है। प्रति वर्ष देवी अम्बा की पुजा अर्चना नवरात्रों में की जाती है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रों में देवी का आगमन होता है और इस कारण इस दौरान देवी के नवों रूपों कि पुजा बड़े धूम-धाम से और विधि- विधान से कि जाती है। इसी संदर्भ में यह मान्यता है और देवी भगवत में इस का उल्लेख भी है कि प्रति वर्ष देवी का आगमन एक विशेष सवारी से होता है और प्रस्थान भी किसी विशेष सवारी से होता है। यह सवारी आने वाले समय कि शुभ- अशुभ घटनाओं कि सूचक भी मानी गयी है।
सवारी का निर्धारण कैसे होता है और इस के क्या परिणाम होते है इसका स्पष्ट उल्लेख देवी भागवत में मिलता है। सवारी का निर्धारण देवी के आगमन के दिन से और जाने का निर्धारण भी प्रस्थान के दिन से होता है। आगमन के लिए यह श्लोक देवी भागवत में मिलता है –
शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे चदोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता ।।
अगर नवरात्रि का प्रारंभ –
सोमवार व रविवार से हो रहा है तो देवी हाथी की सवारी से आती हैं।
शनिवार और मंगलवार को नव रात्रि प्रारंभ हैं तो माता का वाहन घोड़ा होता है।
गुरुवार और शुक्रवार का दिन है तो माता डोली पर बैठकर आती है,
वहीं अगर दिन बुधवार है तो माता की सवारी नाव होती है।
इस बार नवरात्रि का प्रारंभ गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021 से हो रहा है, इसलिए इस बार माता की सवारी डोली होगी। यहाँ पर यह ध्यान रखे कि सवारी का निर्धारण सूर्योदय के समय प्रतिपदा होने से होता है, प्रतिपदा प्रारम्भ होने के समय से नहीं। अब विभिन्न सवारियों से आने क्या परिणाम होते है इस का भी उल्लेख देवी भागवत में मिलता है। यह इस श्लोक से स्पष्ट है –
गजे च जलदा देवी क्षत्र भंग स्तुरंगमे।
नोकायां सर्वसिद्धि स्या ढोलायां मरणंधुवम्।।
यदि देवी कि सवारी हाथी है तो विशेष वर्षा,
घोड़ा कि सवारी हो तो युद्ध एवं छत्र-भङ्ग( राजा का पतन) होता है ।
यदि सवारी नौका हो तो सर्व सिद्धि होती है,
डोली सवारी होने पर महामारी से भय या मरन होता है।
इस बार देवी का वाहन डोली है तो इस का अर्थ हुआ कि इस बार देवी का आगमन शुभ नहीं है – महामारी का भय एवं आम जनता के लिए परेशानी युक्त होगा। यदि अन्य गोचरीए ग्रह स्थिति प्रतिकूल हो तो निश्चित रूप से परिणाम काफी प्रतिकूल हो सकते है। वर्तमान में 3-3 मुख्य ग्रह -बृहस्पति, शनि, और बुध वक्री एवं स्थैतिक (retrograde and stationary) अवस्था में है जो निश्चय ही सामान्य अवस्था नहीं है – कुछ विशेष प्रतिकूल परिणाम की संभावना आने वाले 3 माह के अंदर बनती है।
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जिस तरह देवी के आने का वाहन निर्धारित होता है उसी तरह देवी के प्रस्थान का भी वाहन निर्धारित किया जाता है और उसके भी कुछ परिणाम बताए गए है। इस संदर्भ में देवी भागवत में यह उल्लेख है की –
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा।
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा।
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
रविवार या सोमवार को देवी भैंसे की सवारी से जाती हैं तो देश में रोग और शोक बढ़ता है।
शनिवार या मंगलवार को देवी मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं, जिससे दुख और कष्ट की वृद्धि होती है।
बुधवार या शुक्रवार को देवी हाथी पर जाती हैं. इससे शुभ और बारिश ज्यादा होती है।
गुरुवार को मां दुर्गा मनुष्य की सवारी से जाती हैं. इससे सुख और शांति की वृद्धि होती है।
यहां विद्वानों में वैचारिक मतभेद है। कुछ लोग का मत है कि दुर्गा जी जब मंगलवार के दिन विदा होती हैं तो पैदल जाती हैं । इसके अलावा कुछ लोग के कथनानुसार देवी मंगलवार को घोड़ा पर विदा होती है। इस तरह स्पष्ट है की प्रस्थान की सवारी का निर्धारण प्रस्थान के समय जो दिन पड़ता है उस के आधार पर होता है।
इस बार माता का प्रस्थान हाथी पर हैं जो शुभ है – अनुकूल बारिश की संभावना बनेगी।
यहाँ यह ध्यान रखे की यदि आगमन अशुभ है और प्रस्थान शुभ है तो प्रतिकूलता ज्यादा समय तक नहीं रहते। यदि आगमन शुभ और प्रस्थान अशुभ हो तो प्रतिकूलता ज्यादा समय तक रहते है। इस वर्ष आगमन अशुभ और प्रस्थान शुभ है इस कारण प्रतिकूल परिणाम कुछ समय विशेष के लिए ही होगी। यहाँ यह भी ध्यान रखे की इसी माह तीनों वक्री गृह मार्गी हो रहे है जो प्रतिकूल प्रभावों में कमी के स्पष्ट संकेत है।
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देवी के आगमन और प्रस्थान के जो परिणाम है वो देश और समाज के संदर्भ में बताए गए है। इस का प्रभाव व्यक्ति विशेष को कुछ पड़ेगा पर देवी के आगमन के समय का विशेष परिणाम आगमन के समय व्यक्तिगत कुंडली में क्या स्थिति है उस पर निर्भर होते है। मतलब यह हुआ की गोचर के सामान्य नियम का प्रयोग कर व्यक्ति विशेष के संदर्भ में परिणाम देखे जाएंगे। यदि किसी व्यक्ति के संदर्भ में छठे, आठवें या बारहवें भाव से हो रहा है तो परिणाम अनुकूल नहीं होते।
यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा की व्यतिगत परिणाम तिथि के प्रारम्भ होने समय जो लग्न होता है उसी के आधार पर देखे जाएंगे। इस वर्ष प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ अपराह्न 16.34 में हो रहा है। इस समय स्थान विशेष में जो लग्न होता है उसी के आधार पर व्यक्तिगत परिणाम देखे जाएंगे। दिल्ली में उस वक्त कुम्भ लग्न का उदय है। तो कर्क, कन्या और मकर राशि के लिए देवी का आगमन शुभ नहीं है। इन राशि वालों के लिए विशेष सावधानी की जरूरत है। स्थान बदलने से लग्न बदल सकते है। लग्न बदलने से परिणाम भी बदल जाएंगे।
प्रतिकूल स्थिति में देवी की विशेष पूजन करना लाभप्रद होगा। ऐसे में रोग परेशानियों से मुक्ति के लिए नवरात्रि में श्रद्धा भाव से माता की उपासना करें और नियमित कवच कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करके यथा संभव:
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्. त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।
तथा
ॐ जयंती मंगला काली भद्र काली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।।
इस मंत्र का जप किया करें।
नवरात्रि मां भगवती दुर्गा की आराधना करने का श्रेष्ठ समय होता है। इन नौ दिनों के दौरान मां के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि का हर दिन मां के विशिष्ट स्वरूप को समर्पित होता है, और हर स्वरूप की अलग महिमा होती है। आदिशक्ति मां जगदम्बा के हर स्वरूप से अलग-अलग मनोरथ पूर्ण होते हैं।
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शारदीय नवरात्रि का पूजन क्रम
7 अक्टूबर 2021 (गुरुवार) – प्रतिपदा घटस्थापना मां शैलपुत्री पूजा
8 अक्टूबर 2021 (शुक्रवार) – द्वितीया माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
9 अक्टूबर 2021 (शनिवार) – तृतीय माँ चंद्रघंटा पूजा, चतुर्थी माँ कुष्मांडा पूजा
10 अक्टूबर 2021 (रविवार) – पंचमी माँ स्कंदमाता पूजा
11 अक्टूबर 2021 (सोमवार) – षष्ठी माँ कात्यायनी पूजा
12 अक्टूबर 2021 (मंगलवार) – सप्तमी माँ कालरात्रि पूजा
13 अक्टूबर 2021 (बुधवार) – अष्टमी माँ महागौरी दुर्गा पूजा
14 अक्टूबर 2021 (गुरुवार) – महानवमी माँ सिद्धिदात्री पूजा
15 अक्टूबर 2021 (शुक्रवार) – विजयदशमी दशहरा
Apart from Shani, Guru and Bush, Shukra also in close proximity to ketu which may result in unfavorable time for women in general
Please read budh in place of Bush written inadvertently